जलियांवाला बाग हत्याकांड : प्रिय दोस्तों आज ही के दिन 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में जलियांवाला बाग में जनरल डायर के कहने पर अमृतसर में नरसंहार हुआ था, जब भारत देश अंग्रेजों का गुलाम था और ब्रिटिश सरकार का राज था तब ब्रिटिश सरकार के राज में भारतीय स्वतंत्रता इतिहास का यह एक काला दिन माना जाता है, आईए इस पोस्ट में जानते हैं कि आज का दिन क्यों एक जश्न के दिन के रूप में नहीं, बल्कि एक काले दिन के रूप में मनाया जाता है
आज के दिन को जलियांवाला बाग के 104th बरसी के रूप में आज भी याद किया जाता है, हालांकि ब्रिटिश सरकार के आधिकारिक आंकड़ों में केवल 379 हत्याएँ दर्ज की गई थी
Jallianwala Bagh Massacre 2023
आज ही के दिन 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग, पंजाब राज्य के अमृतसर में भारतीय स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे शहीदों को याद करते हुए मनाया जाता है, भारतीय इतिहास से जुड़ा हुआ यह एक दिन ऐसा है जिसे Black day के रूप में याद किया जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि भारतीय स्वतंत्रता इतिहास में या दिन काफी दर्दनाक और दुखदाई यादव से भरा हुआ है, जलियांवाला बाग हत्याकांड में इस दुर्भाग्यपूर्ण दिन हजारों की संख्या में वह लोग एक जगह शामिल हुए जोकि रोलेट एक्ट के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे, रोलेट एक्ट एक ऐसा काला कानून था जिसने नागरिकों के अधिकारों पर अंकुश लगा दिया था, इसीलिए अंग्रेजी सरकार को जवाब देने के लिए सभी भारतीय एक जगह इकट्ठा हुए थे.
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जलियांवाला बाग हत्याकांड क्या था?
जलियांवाला बाग हत्याकांड, ब्रिटिश भारत के पंजाब राज्य के अमृतसर शहर में 13 अप्रैल 1919 को घटी एक दुखद घटना का परिचायक था, ब्रिटिश कॉलोनियल शासन से मुक्ति पाने के लिए भारत के इतिहास और भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के रास्ते में याद किए जाने वाला यह एक भयंकर था. इस दिन की शुरुआत 1919 में ब्रिटिश दास्तां से मुक्ति पाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने जो रोलेट एक्ट बनाया था, जो कि भारतीय लोगों के अधिकारों का हनन कर रहा था, का विरोध करने के लिए बनाया गया था. रोलेट एक्ट एक ऐसा कानून था जिसमें किसी भी व्यक्ति को जेल में पकड़कर बिना मुकदमे के अंदर डाला जा सकता था, ऐसा उन नागरिकों के लिए था जो स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अंग्रेजों के शक के दायरे में थे. इस अधिनियम के वजह से भारत के पंजाब शहर में आंदोलन शुरू हुआ था और धीरे-धीरे यह संपूर्ण भारत में फैल गया
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दरअसल, 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में प्रदर्शनकारियों का एक समूह इकट्ठा हुआ था. यह एक सार्वजनिक पार्क था, जहां रोलेट एक्ट का विरोध करने और दो भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं को जेल से छुड़ाने के लिए विरोध किया जा रहा था. यहां पर न केवल बच्चे और महिलाएं थी बल्कि अधिक संख्या में पुरुषों का भी जमावड़ा था.
इसी बीच जनरल डायर, जिसका आपने भारतीय इतिहास को पढ़ते हुए कई बार नाम सुना होगा, यह ब्रिटिश सरकार का नेतृत्व कर रहा था और इसने भारतीयों को दबाने के लिए इस नरसंहार करने के लिए फैसला लिया. 13 अप्रैल 1919 को जनरल डायर और उसके सैनिकों ने अमृतसर में स्थित जलियांवाला बाग में प्रवेश किया और भीड़ को फसाने के लिए एकमात्र प्रवेश द्वार को अवरुद्ध कर दिया था.
जनरल डायर ने बिना कोई चेतावनी दिए अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वह निहत्थी भीड़ पर गोलियां चला दे, और देखते ही देखते अंग्रेज अफसर के साथ अंग्रेजी सैनिकों ने लगभग 10 मिनट पर गोलीबारी की, ऐसा उन्होंने जब तक किया तब तक कि उनकी गोलियां और बारूद खत्म नहीं हो गए। और आखिरकार लगभग 400 से 1000 लोग इस नरसंहार में शहीद हो गए
जलियांवाला बाग हत्याकांड का भारतीय क्रांतिकारी भगत सिंह पर काफी गहरा असर पड़ा, और इस खबर की सूचना मिलते ही वह 19 किलोमीटर पैदल चलकर जलियावालाबाग पहुंचे, भारतीय इतिहास के इस घटनाओं ने भगत सिंह के अंतर्मन को झकझोर कर रख दिया था।
असहयोग आंदोलन की शुरुआत का कारण
प्रिय दोस्तों, भारतीय स्वतंत्रता की मांग करते हुए इस घटना के बाद समस्त भारतीय जनों में आजादी की मांग को लेकर आक्रोश जंगल में फैली आग की तरह फैल गया, और अब सब भारतीय ब्रिटिश शासन के खिलाफ अलग-अलग मोर्चों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। महात्मा गांधी, जिन्हें हम सभी राष्ट्रपिता के नाम से जानते हैं, जोकि ब्रिटिश राज का समर्थन करते हुए प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेजो की तरफ शामिल हुए थे, उन्होंने स्वयं भी ब्रिटेन की औपनिवेशिक सरकार के साथ असहयोग आंदोलन की घोषणा कर दी थी।
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13 अप्रैल 1919 को हुए इस हत्याकांड ने ना केवल अंग्रेजी हुकूमत को हिलाने के लिए सारे भारतीय नागरिकों को एक नीव प्रदान कर दी थी, क्योंकि अब भारतीयों को अंग्रेजी शासन के क्रूरता का पता चल गया था, और अब वह इस गुलामी की बेड़ियों से जल्दी से जल्दी मुक्त होना चाहते थे,
जनरल डायर को कर दिया था निरस्त
जलियांवाला बाग हत्याकांड ना केवल भारतीय इतिहास में बल्कि विश्व स्तर पर पढ़े जाने वाले इतिहास में एक नरसंहार ई घटना के रूप में जाना जाता है। इस घटना को देखते हुए भारत के लिए सेक्रेटरी ऑफ स्टेट एडमिन मोंटेग्यू ने 1919 में इस घटना की जांच के लिए हंटर कमीशन को बिठाया था.
हंटर कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद जनरल डायर को ब्रिटिश सरकार के नेतृत्व से हटा दिया गया था, और उनके पद को Demote करते हुए वापस ब्रिटेन भेज दिया गया था. अंग्रेजी अदालत जिसे हाउस ऑफ कॉमंस House of Commons कहां जाता है, उन्होंने जनरल डायर के खिलाफ निंदा का प्रस्ताव पारित किया था, लेकिन दूसरी ओर दोगलापन दिखाते हुए अंग्रेजी सरकार ने जनरल डायर को ब्रिटेन में प्रशस्ति पुरस्कार से भी सम्मानित किया था.
लेकिन बाद में वैश्विक दबाव के चलते, जनरल डायर से अंग्रेजी सरकार द्वारा इस सम्मान को छीन लिया गया था. 1920 में इस घटना के 1 साल के बाद जनरल डायर को इस्तीफा देना पड़ा. 1919 में इस घटना को अंजाम देने वाले जनरल डायर दिमागी बीमारी के चलते अल्लाह को प्यारे हो गए.
इस तरह इस ऐतिहासिक दिन को, भारत के आजादी के लिए लड़ने वाले क्रांतिकारियों को याद करते हुए मनाया जाता है, मैं आशा करता हूं कि आप को दी गई सभी जानकारी लाभदायक लगी होगी, यदि आपको यह पोस्ट पसंद आई हो तो आप इसे अपने मित्रों के साथ शेयर करें, इस पोस्ट को पूरा पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद.
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